बिश्नोई सम्प्रदाय के प्रमुख धाम - bishnoi dham-
बिश्नोई धाम
~ Samrathal Dham
( समराथल धाम )
यह बीकानेर जिल की नोखा तहसील में स्थित हैं। सम्भराथल मुकाम से दो कि.मी. दक्षिण में हैं तथा पीपासर सें लगभग 10-12 कि.मी. उत्तर में हैं। बिश्नोई पंथ में सम्भराथळ का अत्यधिक महत्त्व हैं। यह स्थान गरू जाम्भोजी का प्रमुख उपदेश स्थल रहा हैं। यहंा गुरू जाम्भोजी इक्कावन वर्ष तक मानव कल्याण हेतु लोगों को ज्ञान का उपदेश देते रहें हैं। विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करने के बाद जाम्भोजी यहीं आकर निवास करते थे। यह उनका इक्कावन वर्ष तक स्थायी निवास रहा हैं। सम्वत 1542में इसी स्थान पर गुरूज जाम्भोजी ने अपनी अलौकिक शक्ति से अकाल पीडि़तों की सहायता की थी। सम्भराथळ पर ही गुरू जाम्भोजी ने सम्वत 1542का कार्तिक वदि अष्टमी को बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी। मुकाम में लगने वाले मेलों के समय लोग प्रतः काल यहां पहुंचकर हवन करते हैं और पाहळ ग्रहण करते हैं। सम्भराथल को सोवन-नगरी ए थलाए थल एवं संभरि आदि नामों सें भी पुकारते है। इसका प्रचलित नाम धोक धोरा हैं। सम्भराथल धोरे की सबसे ऊंची चोटी परए जहां बैठकर जाम्भोजी उपदेश देते थे और हवन करते थेए वहां पहले एक गुमटी थी और अब एक सुन्दर मन्दिर बना दिया गया हैं और साथ ही पूर्व दिशा में नीचे उतरने के लिये पक्की सीढ़यां बना दी गई हैं। मन्दिर के आस-पास साधुओं के रहने के मकाने बने हुए हैं। सम्भराथल के पूर्व की ओर नीचे तालाब बना हुआ हैए यहां से लोग मिटटी निकालकर आस-पास श्पालोश् पर डालते हे ओर कुछ मिटटी ऊपर लाकर डालते हैं। कहते है कि यहीे सें जाम्भोजी ने अपने पांचो श्ष्यिों को सोवन-नगरी में प्रवेश करवाया था। अब लोगों द्धारा वहां सें मिटटी निकालने के पीछे सम्भवतः एक धारण यह हैं कि शायद सोवन नगरी का दरवाजा मिल जाय और वे उसमें प्रवेश कर जायें। सम्भराथल और मुकाम के बीच में बनी हुई पक्की सड़क पर समाज की एक बहुत बड़ी गौशाला हैंए जो समाज की गो-सेवा की भावना की प्रतीक है।
~ Muktidham Mukam
( मुक्तिधाम मुकाम )
यह बीकानेर जिल की नोखा तहसील में हैं जो नोखा से लगभग 16 कि.मी. दूर हैं। यहांपर गुरू जाम्भोजी की पवित्र समाधि हैं। इसी कारण समाज में सर्वाधिक महत्त्व मुकाम का ही हैं। इसके पास ही पुराना तालाब गांव हैं। कहा जाता हैं कि गुरू जाम्भोजी ने अपने स्वर्गवास से पूर्व समाधि के लिये खेजड़े एवं जाल के वृक्ष को निशानी के रूप में बताया और कहा था कि वहां 24 हाथ की खुदाई करने पर शिवजी का धुणा एवं त्रिशूल मिला थाए वही आज समाधि पर बने मन्दिर पर लगा हुआ है और खेजड़ा मन्दिर परिसर में स्थित हैं। मुकाम में वर्ष में दो मेले लगते है एक फाल्गुन की अमावस्या को तथा दूसरा आसोज की अमावस्या को। फाल्गुन की अमावस्या का मेला तो प्रारम्भ से ही चला आ रहा आसोज मेला संत वील्होजी ने सम्वत् 1648 में प्रारम्भ किया था। आजकल हर अमावस्या को बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुचने प्रारम्भ हो गयें हैं । कई वर्षो से मुकाम में समाज की ओर सें निःशुल्क भण्डारे की व्यवस्था हैं। मुकाम में पहुंचने वाले सभी जातरी समाधि के दर्शन करते हैं और धोक लगाते हैं। सभी मेंलों पर यहां बहुत बढ़ा हवन होता है जिसमेें कई मण घी एवं खोपरे होमे जाते है। घी कें साथ-साथ जातरि पक्षियो के लिये चूण भी डालते हैं जिसे पक्षी वर्षभर चूगते रहते हें। अब समाधि पर बने मन्दिर का जीर्णोद्धार करके एक भव्य मन्दिर बना दिया गया हैं । समाधि पर बने मन्दिर को निज मन्दिर भी कहते हैं । मुकाम में मेलो में आनें वाले लोगों के व्यक्तिगत मकान भी हैं तथा समाज की भी अनेक धर्मशालाएं हें। मेलो की समस्त व्यवस्था अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा एवं अखिल भारतीय गुरू जम्भेश्वर सेवक दल द्धारा की जााती है।
~ Pipasar Dham
( पीपासर धाम )
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यह गुरू जाम्भोजी का अवतार स्थल हैं । यह मुकाम से लगभग 10-20 कि.मी. दक्षिण में और नागौर से 30 कि.मी. उतर में है। गांव में जिस कुएं के पास जाम्भोजी ने सबदवाणी का प्रथम सबद कहा था वह गांव में हैं और अब बंद पड़ा हैं। इसी कुए पर राव दुदा जी ने जाम्भोजी को चमत्कारिक ढ़ंग से पशुओ को पानी पिलाते हुए देखा था। वर्तमान साथरी जाम्भोजी के घर की सीमा में हैं। यहीं पर एक छोटी सी गुमटी हैं। कहते हैं कि यहीं पर जाम्भोजी का जन्म हुआ था। सथरी में रखी हुई खड़ाऊ की जोड़ी और अन्य सामान गुरू जाम्भोजी का बताया जाता है। कुए एवं साथरी के बीच आज भी वह खेजड़ा मौजूद है इसी खेजड़े के राव दुदा ने अपना घोड़ा बांधा था। यहीं पर जाम्भोजी ने अपने पशुचारण - काल में राव दुदाजी को ’परचा ’ दिया था। राव दुदाजी की प्रार्थना पर गुरू जाम्भोजी ने उन्हें मेंड़मे प्राप्ति का आशीर्वाद और एक काठ-मूठ की तलवार दी थी। सम्भराथळ पर रहना प्रारम्भ करने से पूर्व तक जाम्भोजी पीपासर में रहतें थें। यहां जन्माष्टमी को मेला लगता हैं। मुकाम में लगने वाले मेलों के समय भी लोगइस पवित्र धाम के दर्शन करने पहुंचते हैं।
~ Jambholav Taalab
( जाम्भोलाव तालाब )
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यह जोधपुर जिले की फलौदी तहसील में है। फलौदी से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर एक बड़ा तालाब है, जिसे गुरू जाम्भोजी ने खुदाया था। यही तालाब जाम्भोलाव के नाम से सुप्रसिद्ध है। यहां प्रतिवर्श दो मेले भरते है। एक चैत्र की अमावस्या व दूसरा भाद्रपद की पूर्णिमा को।
~ Lodipur Dham
( लोदीपुर धाम )
यह स्थान जिला मुरादाबाद (उत्तरप्रदेष) में स्थित है। यह दिल्ल्ी मुरादाबाद रेलवे लाइन पर मुरादाबाद से 5 किमी दूर है।
जाम्भोजी एक बार यहां भ्रमण पर गये थे। जाम्भोजी ने यहां पर खेजड़ी का वृक्ष जागृत करने के उद्देष्य से किया था।
यहां जाम्भोजी का मंदिर स्थित है। यहां प्रति वर्श चैत्र की अमावस्या को मेला लगता है।
~ Lalasar Dham
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लालासर की साथरी बीकानेर स्थित नोखा तहसील में है। यह बीकानेर से लगभग 30 किमी दूरी पर है। यहां गुरू जाम्भोजी ने अपना षरीर त्यागा था। यह गुरू जाम्भोजी का निर्वाण स्थल है।
Rotu Dham
( रोटू धाम )
नागौर जिले की जायल तहसील में स्थित एक ग्राम है यह जायल से 18 किलोमीटर व व नागौर से 45 किमी की दूरी पर स्थित है। वर्तमान में यहां पर एक नया भव्य मंदिर बन चुका है। इस मंदिर का महत्व इसलिए ज्यादा है कि यहां जाम्भोजी ने उमा जिसको नौरंगी के नाम से जाना जाता था जिसके मायरा भरा था। यहां पर हिरण भी काफी संख्या में विचरण करते है।
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